क्रिस्टल्स
क्या है -क्रिस्टल
को रसायन शास्त्र और खनिज शास्त्र के संदर्भ में स्फटिक, मणि या स्फटिक कहा गया है। जबकि
वनस्पति में इन्हें बिल्लौर कहां जाता है। उपरत्न कहने से हमारे सामने एक ऐसा आभा मय
नैसर्गिक वस्तु का चित्र उभरता है, जो अत्यधिक सुंदर कठोर और दुर्लभ है तथा जो
उच्च ऊर्जा और तीव्र कंपन सहने में सक्षम है। क्रिस्टल शब्द मूल रूप से ग्रीक शब्द
क्लोज से बना है, जिसका अर्थ है- साफ बर्फ। निश्चित रूप से उनका तात्पर्य निर्मल
स्फटिक की आकाशवाणी से था, जिसे उसकी चमक के अभाव के कारण साफ बर्फ कहां गया।
भारतीय संदर्भ में क्रिस्टल को उपरत्न कहा गया है। उपरत्न का अर्थ है कि रत्नों के
समान किंतु रत्न नहीं।
क्रिस्टल
या उपरत्न कैसे
बनते हैं - पृथ्वी पर क्रिस्टल दो जगह पाए जाते
हैं, एक धरती की भीतरी सतह में और दूसरा समुद्र व अन्य जलाशयों के तल में।
क्रिस्टल के निर्माण की प्रक्रिया काफी जटिल व लंबी होती है। पृथ्वी की परत के
नीचे अत्याधिक गर्मी व दबाव है। इस गर्मी व दाब के कारण सतहो में स्थित चट्टानें
पिघल जाती हैं और बहुत लंबे समय तक यह चट्टानें जमके क्रिस्टल का रूप ले लेती है।
दूसरी तरह की रचना समुद्रों या अन्य जलाशयों के भीतरी भागों में होती है, कार्बनिक
क्रिस्टल गहरे समुद्र में जलीय पौधों एवं जीवो द्वारा बनते हैं।
क्रिस्टल
या उपरत्न बहुत उपयोगी - आज के युग में क्रिस्टल या उपरत्न इतने उपयोगी हैं, कि उनके बगैर
जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती है। क्रिस्टल आभूषणों में उपयोग में लाए जाते
हैं। इसके साथ ही इनका उपयोग फेंगशुई में, वास्तव में ऊर्जा प्राप्त करने में और
चिकित्सा में भी किया जाता है। रत्न और उपरत्नओं का औषधीय महत्व का पहला प्रमाण
यूनानी साहित्य में मिलता है। यह विशेषताएं और ज्योतिष उपयोग अरब के ग्रंथों में
भी थी। आठवीं शताब्दी में यूरोपीय रत्न ग्रंथ अरब के विद्वानों के काम से प्रभावित
हुए। मध्ययुगीन यूरोप में सामान्यतः रत्नों को औषधीय ताबीज या औषधीय खुराक के रूप
में प्रयोग में लाया जाता था। पाश्चात्य साहित्य में यूनान के योग प्रेस ट्रस्ट की
पुस्तक ऑन स्टोन खनिज विज्ञान की सबसे प्राचीन उपलब्ध पुस्तक है। उसके 16 खनिजों को धातु मृदा और पत्थरों में
वर्गीकृत किया।
क्रिस्टल
द्वारा या उपरत्न द्वारा ऊर्जा में उपचार - भौतिक शरीर के साथ-साथ मनुष्य
का एक ऊर्जा शरीर भी होता है। यह दोनों शरीर विद्युत परिपथ की भांति होते हैं,
जिनसे ऊर्जा प्रवाहित होती है। क्रिस्टल ऊर्जा के लिए ट्रांसफार्मर का कार्य करते
हैं। यह ऊर्जा की तीव्रता को कम या ज्यादा करते हैं। क्रिस्टल ऊर्जा को ऊर्जा स्तर
से भौतिक स्तर या भौतिक स्तर से ऊर्जा स्तर पर जाने में भी सहायता करते हैं।
क्रिस्टल विभिन्न ऊर्जाओ को व्यक्ति के लिए उपयोगी जैव ऊर्जा में बदलते हैं, यह
जैव ऊर्जा व्यक्ति के जैविक तंत्र को संतुलित करती है। यह संतुलन शारीरिक स्तर के
साथ-साथ भावनात्मक, मानसिक और आत्मिक स्तर पर भी होता है। किर्स्त्लो से शरीर को
ऊर्जा का स्थानांतरण होता है। यह माना गया है कि मानव शरीर ठोस और द्रव स्थलों का
तंत्र है। इसलिए क्रिस्टल से उर्जा उपचार में एक
क्रिस्टल के
माध्यम से शरीर के क्रिस्टल तंत्र को ऊर्जा पहुंचाई जा सकती है। ऊर्जा का यह
स्थानांतरण शरीर को ऊर्जा निर्माण में सक्षम बनाता है। वह ऊर्जा को संतुलित बनाए
रखने की क्षमता भी देता है।
क्रिस्टल
या उपरत्न कैसे कार्य करते हैं - क्रिस्टल भावनात्मक और मानसिक स्तर पर व्यक्ति के विचारों
से संमबन्ध में स्थापित कर लेते हैं। इस स्थिति में क्रिस्टल
भावनात्मक और मानसिक स्थिति के समन्वय से नकारात्मक विचारों को दूर करते हैं। फिर
क्रिस्टल मस्तिष्क में नए अच्छे और सकारात्मक विचारों का सृजन करते हैं। इस प्रकार
क्रिस्टल विचार शक्ति और कल्पना शक्ति को बढ़ाते हैं। कोई भी व्यक्ति जब ऊर्जा की
कमी का अनुभव करता है, तो यह कमी उसके मस्तिष्क और भावनाओं को प्रभावित करती है।
इस स्थिति के लंबे समय तक बने रहने से उसके शरीर में रोग के लक्षण उभरते हैं। कई
बार यह प्रभाव मानसिक रूप से भी होता है। विभिन्न रोगों का अलग-अलग तरह से उपचार
किया जाता है। कायिक स्तर पर फिजीशियन उपचार करते हैं। मानसिक परेशानियों के लिए
मनोचिकित्सक की सहायता ली जाती है। आध्यात्मिक बातों के लिए किसी संत या गुरु से
संपर्क किया जाता है, परंतु क्रिस्टल के ऊर्जात्मक उपचार में इन तीनों बातों पर
ध्यान दिया जाता है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति केवल शरीर, दिमाग या आत्मा नहीं है
बल्कि वह इन सब का समग्र रूप है। यह तीनों ऊर्जा के विभिन्न स्तर हैं और सब मिलकर
एक व्यक्ति का अस्तित्व बनाते हैं। ऊर्जात्मक उपचार इन सब ऊर्जाओ का संतुलन है।
यदि
आप इन रत्न व उपरत्न के बारे में गहन अध्यन करना चाहते है, तो आप जेम्स एंडक्रिस्टल में इंस्टिट्यूट ऑफ़ वैदिक एस्ट्रोलॉजी से पत्राचार द्वारा कोर्स कर सकते
है।
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