राहु के बारे
में भ्रांति - आमतौर
पर राहु के बारे में
सबको भ्रांति है,
कि वह अशुभ ही होता
है परंतु ऐसा
सत्य नहीं है।
जन्म कुंडली में
राहु शुभ स्थिति
में होने पर शुभ फल
देता है। शुभ स्थिति का
अर्थ है, उच्च
का होना या स्वराशि में होना
या मित्र राशि
में होना या शुभ ग्रह
द्वारा देखा जाना
या अशुभ ग्रहों
के साथ बैठना।
महादशा में तीन
स्थितियां
- पूरी महादशा को
तीन भागों में
विभाजित करने पर हमें तीन
हिस्से प्राप्त होते
हैं। पहले तिहाई,
दूसरी तिहाई और
तीसरी तिहाई। जब
हम महादशा के
खत्म होने की बात करते,
तो
वह हिस्सा अंतिम
या तीसरी तिहाई
में आता है। तब यदि
हमें यह देखना
है कि राहु की महादशा
के अंदर में
क्या होता हैl
तो हमें अंतिम
तिहाई में आने वाली अंतर्गत
दशाओं के बारे में जानना
होगा। उनमें से
भी ज्यादा महत्वपूर्ण
अंतर्दशा राहु में
मंगल की होगीl
जो कि 1 वर्ष
18 दिन की होगी।
अथार्त राहु की महादशा
ने अंतिम वर्ष
को हम देखेंगे
तो हमें दशा
के अंत के बारे में
पता चलेगा।
राहु की स्थिति
विशेष
रूप
में - राहु
की शुभ या अशुभ स्थिति
महादशा के अंत को प्रभावित
करेगी। साथ ही मंगल की
शुभ या अशुभ स्थिति भी
दशा का अंत निर्धारित करेगी।
राहु की महादशा
के
अंत
समय
के
परिणाम - राहु
की महादशा का
अंत राहु में
मंगल की अंतर्दशा
से होती है।
यह अवधि 1 वर्ष
18 दिन होती है । इस
1 वर्ष में जो परिणाम प्राप्त
होंगे उन्हें निम्न
श्रेणी में विभाजित
कर शुभ-अशुभ
की प्राप्ति को
देखते जाएंगे --
1. जातक इस 1 वर्ष में
चोर, अग्नि, शत्रु या शस्त्र से भय पाता है।
2. वरिष्ठ अधिकारी या
गुरुजन का कोपभाजन होता है। चोर व शस्त्र से भय होता है। कभी मान-हानि, पद-हानि, मुकदमे
में पराजय से कष्ट पाता है। नेत्र या हृदय रोग की संभावना बढ़ जाती है। विवाद, विरोध
व वैमनस्य मानसिक चिंता की वृद्धि करता है।
3. राहु में मंगल की
अंतर्दशा अग्नि दुर्घटना भय देती है। प्रियजन से वियोग कष्टप्रद होता है।
4. यदि मंगल लग्न से
केंद्र त्रिकोण या लाभ स्थान में हो अथवा मकर, मेंष या वृश्चिक राशि में हो या शुभ
ग्रहों से युक्त हो, तो इस 1 वर्ष में अर्थात राहु की महादशा के अंत में राज्य सम्मान,
पद अधिकार, संपदा, अचल-संपदा, संतान-सुख, धन-वैभव, रत्न-आभूषण व वाहन मिलते हैं। कभी
जाताक नष्ट संपत्ति या राज्य को फिर से पाने में सफल होता है।
5. दशानाथ राहु से यदि
मंगल केंद्र त्रिकोण तृतीया एकादश भाव में स्थित हो तो शुभ व श्रेष्ठ वस्त्रों की प्राप्ति,
पर्यटन व प्रवास, उच्च-अधिकारियों से मेल-मिलाप, पुत्र की समृद्धि तथा अपने स्वामी
के धन व यश की वृद्धि का सुख होता है।
6. शुभ व बली मंगल की
अंतर्दशा जातक को जन नेता या दल प्रमुख बनकर बहुत लोगों की सहायता व समर्थन से सफलता
देती है। जातक भाई-बंधुओं से स्नेह, सम्मान, सहयोग व धन पाता है।
7. राहु से त्रिक (6,
8, 12 वे) भाव में स्थित मंगल या पापग्रह से युक्त मंगल परिवार में रोग, कष्ट व क्लेश
देता है। कभी स्थान परिवर्तन के कारण परिवार व स्वजन से दूर होना पड़ता है। कोई जातक
बंधु-वर्ग का विरोध, स्त्री व पुत्र से मतभेद, चोर-भय, सर्प-विष या चोट लगने से भय तथा देह कष्ट पाता है। बहुधा दशा के प्रारंभ में कष्ट व तत्पश्चात शांति होती है।
बंधु-वर्ग का विरोध, स्त्री व पुत्र से मतभेद, चोर-भय, सर्प-विष या चोट लगने से भय तथा देह कष्ट पाता है। बहुधा दशा के प्रारंभ में कष्ट व तत्पश्चात शांति होती है।
8. यदि मंगल मारकेश हो
तो वह इस 1 वर्ष में आलस्य, अकर्मण्यता तथा महाभय देता है।
उपाय
1. अनिष्ट प्रभाव से
बचने के लिए ब्राह्मण को गाय का दान करना चाहिए। सांड का दान भी स्वास्थ्य व सुख देता
है। रोगियों की चिकित्सा कराने से भी जातक देह सुख में वृद्धि पाता है।
2. महामृत्युंजय जप करना
चाहिए।
3. अभ्र्क, लोहा, तेल,
नीला-वस्त्र, ताम्रपात्र, सप्तधान्य, उड़द, गोमेद, तेल, कंबल का दान करना चाहिए।
सारांश - इस प्रकार राहु महादशा
का मिश्रित होते हुए भी धनदायक ही होता है।
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